Bhool Chuk Maaf Movie Review
राजकुमार राव के करियर में कई बेहतरीन फिल्मों का नाम जुड़ा है — ‘स्त्री’, ‘न्यूटन’, ‘बधाई दो’ जैसी फिल्मों ने उन्हें एक सशक्त अभिनेता के रूप में स्थापित किया है। लेकिन क्या उनकी नई फिल्म ‘भूल चुक माफ’ भी उसी सफर को आगे बढ़ा पाती है? आइए जानते हैं इस अनोखे ड्रामेडी और टाइम-लूप पर आधारित फिल्म का विस्तृत विश्लेषण।
कहानी
रांजन तिवारी (राजकुमार राव) बनारस का रहने वाला एक आम लड़का है जिसकी एक ही तमन्ना है — सरकारी नौकरी पाकर अपनी प्रेमिका तितली मिश्रा (वामीका गब्बी) से शादी करना। लेकिन किस्मत उसे एक ऐसे चक्रव्यूह में धकेल देती है जहां वह एक ही दिन में बार-बार फंस जाता है — वो भी अपनी शादी के दिन
फिल्म की शुरुआत आम सी प्रेम कहानी से होती है, जहां तितली के पिता (ज़ाकिर हुसैन) रांजन को दो महीने का समय देते हैं नौकरी पाने के लिए। रांजन एक बिचौलिए भगवंत दास (संजय मिश्रा) से रिश्वत देकर जुगाड़ लगाता है, लेकिन उसका सपना तब टूटता है जब शादी के ठीक पहले वह टाइम-लूप में फंस जाता है।
अभिनय
राजकुमार राव ने हमेशा ही अपने किरदारों में जान डाली है, और इस फिल्म में भी उन्होंने अपनी पूरी कोशिश की है। वामीका गब्बी का किरदार भी आत्मविश्वासी और ज़मीन से जुड़ा है। लेकिन इस बार स्क्रिप्ट उनकी मेहनत को संभाल नहीं पाती।
संजय मिश्रा, सीमा पाहवा और रघुबीर यादव जैसे अनुभवी कलाकार भी फिल्म को ऊंचाई नहीं दे पाते क्योंकि स्क्रिप्ट बहुत बिखरी हुई और भ्रमित करने वाली है।
निर्देशन
निर्देशक करन शर्मा ने ‘भूल चुक माफ’ के ज़रिए ‘स्त्री’ जैसी हिट फिल्मों की तरह हॉरर और कॉमेडी का मिश्रण पेश करने की कोशिश की है, लेकिन टाइम-लूप और फैंटेसी के साथ उनकी पकड़ ढीली पड़ जाती है। कहानी कई बार घुमाव लेती है लेकिन किसी भी मोड़ पर ठहराव नहीं आता। हास्य के पल गिने-चुने हैं और भावनात्मक दृश्य भी अधूरे लगते हैं।
सिनेमैटोग्राफी
सुदीप चटर्जी की कैमरा वर्क की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। बनारस की गलियों, घाटों और बाजारों को उन्होंने बेहद खूबसूरती से कैद किया है। लेकिन कहानी की कमजोरी इन खूबसूरत दृश्यों को भी बेमतलब बना देती है।
संगीत
फिल्म Bhool Chuk Maaf में एक सरप्राइज़ बैचलर पार्टी और छोटा सा आइटम नंबर डाला गया है, जो न ही कोई प्रभाव छोड़ता है और न ही मनोरंजन। फिल्म की म्यूज़िकल अपील लगभग नगण्य है।
कमजोरियां
- कहानी में ठोस स्क्रिप्ट का अभाव
- टाइम-लूप कॉन्सेप्ट का अधिकतम दोहन न होना
- हास्य तत्वों की कमी और भावनात्मक पक्ष की सतही प्रस्तुति
- सह-कलाकारों का अधूरा उपयोग
राजकुमार राव और वामीका गब्बी के दमदार प्रयास के बावजूद, भूल चुक माफ एक भटकी हुई कोशिश है, जो न मनोरंजन कर पाती है, न ही सोचने पर मजबूर करती है। यह एक और उदाहरण है कि केवल एक अनोखी थीम ही सफल फिल्म नहीं बना सकती, जब तक कि उसे कहानी और पटकथा का मजबूत सहारा ना मिले।
अगर आप राजकुमार राव के फैन हैं या बनारस की गलियों में फिल्मी सफर करना चाहते हैं, तो एक बार देख सकते हैं, वरना इस “भूल चुक” को माफ कर देना ही बेहतर होगा।
‘Bhool Chuk Maaf‘ एक ऐसा प्रयोग है जो कागज़ पर दिलचस्प लग सकता है, लेकिन पर्दे पर वह झटका नहीं दे पाता जिसकी दर्शकों को उम्मीद होती है। राजकुमार राव का अभिनय, बनारस की लोकेशन और कुछ मज़ेदार पल इसे पूरी तरह नकारने लायक नहीं बनाते, लेकिन इसकी कच्ची स्क्रिप्ट, भटकता निर्देशन और अनियंत्रित फैंटेसी एलिमेंट्स इसे एक औसत दर्जे की फिल्म बना देते हैं।