Santan Saptami 2024 ( संतान सप्तमी व्रत 2024)
इस सप्तमी को संतान सप्तमी अनंत सप्तमी और ललिता सप्तमी और संतान सातेय के नाम से भी जाना जाता है.यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए और संतानवान माताएं अपनी संतान की दीर्घायु,आरोग्यता और उनकी उन्नति की कामना से करती है यह व्रत भादो मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है. इस व्रत को करने से नि:संतान स्त्रियों को संतान की प्राप्ति होती है और संतानवान माताओं की संतान को दीर्घायु का आशिर्वाद प्राप्त होता है.इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती और गणपति भगवान की पूजा अर्चना की जाती है.
Santan saptami Kab hai 2024(संतान सप्तमी व्रत कब है)
इस बार 2024 में 10 सितंबर मंगलवार को संतान सप्तमी का व्रत किया जाएगा. सप्तमी तिथि लगेगी 9 सितंबर को रात में 11 बजकर 55 मिनट पर और सप्तमी10 सितंबर को रात्रि में 11 बजकर 13 मिनट तक रहेगी. उदया तिथि के इस दिन राहुकाल का समय रहेगा शाम को 3 बजकर 24 मिनट से 4 बजकर 58 मिनट तक. इस समय में कोई भी शुभ काम न करें. इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहुर्त रहेगा सुबह 9 बजकर 17 मिनट से 12 बजकर 20 मिनट तक.ये समय हर कार्य के लिए शुभ है.
Santan Saptami 2024 संतान सप्तमी व्रत में चुडियां न हो तो क्या करें, कितने दिन पहने चुड़ियां
संतान सप्तमी के व्रत में चांदी या सोने की चुड़ियां या छल्ले धारण किए जाते है. इन चुड़ियों में धारियां होती है और सात निशान होते है. यही संतान सप्तमी के चुड़ियों की पहचान होती है .जिनका सामर्थ्य हर साल चुड़ी खरीदने का नहीं होता है वो तांबे की चुड़ी या छल्ले को भी धारण कर सकते है. यदि आपके पास चुड़ी का सामर्थ्य न हो तो आप चांदी का छल्ला भी पहन सकती हैं. चुडियां सवा तोले के हिसाब से होती है लेकिन अगर चुड़ी बीच से जुड़ी हो और उसपर निशान न हो तो ऐसी चुड़ियां संतान सप्तमी में मान्य नही हैं.मार्केट में नई-नई डिजाइन की संतान सप्तमी की चुड़ियां आने लगी है. आप संतान सप्तमी के दिन जरूर चुड़ी को धारण करें अगर हो सके तो 11 दिन सवा महीने भी इसे पहन सकती है. अगर आपमें चुड़ी लेने का सामर्थ्य नहीं है तो मौली [कलावा] या सफेद धागा ले लें और उसमें सात गांठ लगा ले कलाई का नाप ले ले उसे भी संतान सप्तमी के दिन चुडी की जगह धारण कर सकती हैं. इस धागे की भी उतनी ही मान्यता है जितनी की सोने चांदी की चुड़ियों की .
Santan Saptami 2024 Pooja Vidhi (संतान सप्तमी व्रत पूजा विधि )
संतान सप्तमी व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ सुथरे कपड़े पहनें। फिर पूजा स्थल पर पहले गंगाजल से छिड़काव करें उसके बाद पूजा का संकल्प लें। पूजा घर पर भगवान शिव और माता पार्वती की फोटो सामने रखें और आराधना करें। इसके बाद धूप और आरती के साथ बेलपत्र और पूजा का प्रसाद चढ़ाएं। प्रसाद में खीर-पूरी और मीठे पूए का भोग लगाएं। शिव जी और माता पार्वती की प्रतिमा के सामने नारियल के साथ कलश की स्थापना करें।फिर पूजा की थाली में सभी पूजा सामग्रियां रखें, जिसमें मुख्य रूप से फूल, फल, हल्दी, कुंकुम, चावल, कपूर, कलावा आदि हो। संतान सप्तमी व्रत में माता और पिता दोनों का ही पूजा में शामिल होना आवश्यक होता है। पूजा के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की आरती उतारें और हाथों में कलावा बांधे।
Santan Saptami 2024 Vrat Katha ( संतान सप्तमी के व्रत की कथा)
एक समय की बात है किसी नगर में राजा नगुस अपनी पत्नी रानी चंद्रवती के साथ रहते थे .रानी चंद्रवती की संतान न होने के कारण दोनों राज-रानी बहुत दुखी थे. उसी नगर में एक ब्राह्मण विष्णु गुप्त अपनी पत्नी भ्रदमुखी के साथ रहता था. रानी चंद्रवती और ब्रहाम्णी दोनों में गहरी मित्रता थी. एक दिन वो दोनों सरयू नदी के किनारे गई. तो वहां उन्होंने कुछ महिलाओं को देखा जो नदी किनारे पेड़ के नीचे भोलेनाथ और माता पार्वती की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा अर्चना कर रही थी. उन्होंने उन महिलाओं से जब उस पूजा के बारे में पूछा तो उन महिलाओं ने संतान सप्तमी के व्रत की महिमा बताई. उन दोनों ने यह व्रत करने का संकल्प लिया
तब से ब्रहाम्णी लगातार संतान सप्तमी का व्रत करती रही. परंतु रानी चंद्रमुखी कभी व्रत करती कभी व्रत करना भूल जाती कुछ समय बाद उन दोनों की मृत्यु हो गई. अगले जन्म में रानी ने बंदरिया की और ब्रहाम्णी ने मुर्गे की योनि में जन्म लिया.ब्रहाम्णी को तब भी संतान सप्तमी की महिमा याद रही और वह लगातार भगवान शंकर और माता पार्वती की मन ही उपासना, व्रत करती रही. वही बंदरिया के रूप में रानी को अब भी कुछ याद नहीं था. कुछ समय बाद उन दोनों ने ये योनि भी त्याग दी और अब अगले जन्म में ब्रहाम्णी ने फिर एक एक पंडित की कन्या के रुप में जन्म लिया सर्वगुण संपन्न और रूपवान ब्रहाम्ण की कन्या का विवाह हुआ वही दूसरी और रानी ने राजा के यहां राजकुमारी के रूप में जन्म लिया जिसका विवाह राजा पृथ्वी राज से हुआ.
भोलेनाथ और माता पार्वती के आशिर्वाद से ब्राह्मणी को 8 कर्मनिष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई. वही दूसरी ओर रानी को बहुत समय तक कोई संतान नहीं हुई.ब्राह्मणी को अपने इस जन्म में भी संतान सप्तमी के व्रत का स्मरण रहा और वह लगातार यह व्रत करती रही बहुत समय बाद रानी को एक रोग ग्रस्त पुत्र प्राप्त हुआ. लेकिन अपनी 9 वर्ष की आयु में वो भी परलोक सिधार गया. अब रानी पुत्र के वियोग में तड़पने लगी यह समाचार प्राप्त होने के बाद ब्राह्मणी अपने 8 पुत्रों के साथ रानी से मिलने उसके महल गई .वहां रानी को ब्रहाम्णी के 8 पुत्रों को देखकर जलन हुई उसने उन्हे मारने की योजना बनाई .एक दिन उसने ब्रहाम्णी के 8 पुत्रों को भोजन पर बुलाया और उन्हे खाने में जहर मिला भोजन खिला दिया परंतु भोलेनाथ की कृपा से और संतान सप्तमी के प्रभाव से ब्राह्मणी के आठों पुत्रों को कुछ भी नहीं हुआ ये देखकर रानी ईर्ष्या की अग्नि में और भी जलने लगी. रानी ने अपने सिपाहियों से कहकर ब्राह्मणी के आठों पुत्रों को यमुना नदी में फेंकवा दिया. लेकिन इस बार भी भोलेनाथ की कृपा से बच गए .इसी प्रकार कई प्रयासों के बाद भी जब रानी ब्राह्म्णी के पुत्रों को नहीं मार सकी तब वह ब्राह्मणी के पास गई और उससे क्षमा मांगते हुए सारी बात ब्राह्मणी को बता दी और पूछने लगी तुमने ऐसा कौन सा व्रत किया जिसके प्रभाव से तुम्हारे पुत्रों को दीर्घायु प्राप्त है. ब्राह्मणी ने रानी को संतान सप्तमी के महिमा बता दी. साथ ही साथ अपने पूर्व जन्मों की कहानी भी बताई और कहने लगी मुझे लगता है तुम्हारे संतान सप्तमी के व्रत का संकल्प लेने और व्रत न करने के कारण ही तुम्हे संतान प्राप्ति नहीं हुई है. तुम भोलेनाथ और माता पार्वती से प्रार्थना करो और संतान सप्तमी के व्रत का नियम से पालन करो भगवान की कृपा से तुम्हारा ये दुख दूर हो जाएगा.रानी ने ऐसा ही किया व्रत के प्रभाव से रानी को संतान सुख प्राप्त हुआ रानी को एक पुत्र की प्राप्ति हुई और रानी ने सर्वसुखों को प्राप्त किया.
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