Kannappa Movie Review
वर्ष 2025 की बहुप्रतीक्षित फिल्म Kannappa आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। विष्णु मंचू के ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में देखी जा रही इस फिल्म में प्रभास, मोहनलाल, मोहन बाबू, अक्षय कुमार और काजल अग्रवाल जैसे सितारे नजर आते हैं। क्या ये फिल्म अपनी भक्ति की भावना और सिनेमाई प्रस्तुति से दर्शकों को छू पाई? आइए जानते हैं इस विस्तृत रिव्यू में।
Kannappa Story Summary : कहानी
Kannappa फिल्म की कहानी आधारित है थिन्नाडु (विष्णु मंचू) नामक एक जंगली शिकारी पर, जो धर्म और भगवान की अवधारणा को नहीं मानता। वह जंगलों में स्वतंत्र जीवन जीता है, पर उसकी दुनिया तब बदलती है जब वह एक दिन एक निर्जीव शिवलिंग से टकराता है।
आरंभ में वह भगवान को चुनौती देता है, पर धीरे-धीरे उसमें एक अविचल और निष्कलंक भक्ति का जन्म होता है। वह बिना किसी विधि-विधान के, अपनी भावनाओं से शिव की पूजा करता है। अंततः जब भगवान शिव (अक्षय कुमार) उसकी भक्ति की परीक्षा लेते हैं, तो थिन्नाडु एक ऐसा बलिदान करता है जो देवताओं को भी झकझोर देता है।
यह कहानी एक ऐसे इंसान की है, जो आस्था से दूर था लेकिन अंततः संत बन गया—एक ऐसा सफर जो प्रेम, त्याग और पूर्ण समर्पण से भरा है।
Kannappa Movie Star Cast Performance
फिल्म कन्नप्पा के कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों में पूरी शिद्दत से जान फूंकी है, जिसमें सबसे प्रमुख नाम विष्णु मंचू का है। उन्होंने थिन्नाडु से कन्नप्पा बनने की यात्रा को जिस ईमानदारी और समर्पण से निभाया है, वह फिल्म का सबसे मजबूत पहलू बनकर उभरता है। उनके अभिनय में भक्ति की सरलता और भावनात्मक गहराई स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, खासकर वह लंबा सीन जिसमें वे बिना कट के एक गहन संवाद बोलते हैं, दर्शकों को भीतर तक छू जाता है। उनके चेहरे के हाव-भाव, आंखों की श्रद्धा और आंतरिक बेचैनी उनके किरदार को पूर्णता प्रदान करते हैं।
फिल्म के दूसरे भाग में जब प्रभास की रुद्र अवतार में एंट्री होती है, तो वह फिल्म को एक नया जीवन देते हैं। उनका किरदार एक ओर जहां शक्ति और गंभीरता का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर उनमें हास्य और संवेदना का सुंदर संतुलन भी देखने को मिलता है। विष्णु मंचू और मोहन बाबू के साथ उनके संवाद जीवंत लगते हैं और कथा को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं। वहीं अक्षय कुमार का भगवान शिव के रूप में छोटा लेकिन प्रभावशाली रोल दर्शकों के दिल पर गहरी छाप छोड़ता है। उनकी शांति, गरिमा और संतुलित उपस्थिति ने इस पौराणिक चरित्र को विशेष बना दिया।
काजल अग्रवाल फिल्म में कम समय के लिए नजर आती हैं, लेकिन उनका प्रभाव गहरा है। वह स्क्रीन पर सधी हुई लगती हैं और अपने सीमित दृश्यों में भी पूरी तरह उपयुक्त साबित होती हैं। मोहन बाबू और मोहनलाल जैसे अनुभवी कलाकारों की मौजूदगी से फिल्म को गहराई मिलती है, हालांकि मोहन बाबू के किरदार को और ज्यादा विस्तार मिल सकता था। मोहनलाल की प्री-इंटरवल उपस्थिति कमाल की है और वह दर्शकों को अपने अभिनय से एक पल में बांध लेते हैं।
Strengths
फिल्म का सकारात्मक पक्ष इसका मुख्य भाव है—आस्था और बलिदान की शुद्धता। विष्णु मंचू का प्रदर्शन फिल्म का आधार है, जो उनके करियर की सबसे भावनात्मक भूमिकाओं में से एक साबित होती है। प्रभास की मौजूदगी से फिल्म को व्यावसायिक अपील और गहराई दोनों मिलती हैं। खास तौर पर क्लाइमैक्स में जिस तरह से भक्ति की भावना को प्रस्तुत किया गया है, वह दर्शकों के मन को छू जाती है और कुछ क्षणों में आंखें भी नम कर देती है। फिल्म का कैमरा वर्क शानदार है और दृश्य संयोजन दर्शकों को उस युग और वातावरण में पहुंचा देता है जिसमें कहानी घटित होती है। साथ ही, फिल्म में नैतिकता और अध्यात्म की जो परतें दिखाई गई हैं, वे इसे सिर्फ एक मनोरंजक फिल्म नहीं, बल्कि एक अनुभूति बना देती हैं।
Weaknesses
हालांकि, फिल्म कुछ कमजोरियों के साथ भी आती है। इसकी सबसे बड़ी कमी है कि इसका पहला हिस्सा बहुत धीमी गति से आगे बढ़ता है, जिससे शुरुआती आधे घंटे में दर्शकों की रुचि थोड़ी कमजोर पड़ सकती है। फिल्म के कई सहायक पात्र—जैसे ब्रह्मानंदम और मधुबाला—उतनी मजबूती से नहीं गढ़े गए हैं जितनी आवश्यकता थी। थिन्नाडु के पारिवारिक संबंध, विशेषकर उनके पिता और पत्नी के साथ, यदि अधिक गहराई से दिखाए जाते तो दर्शक उनके संघर्ष और बलिदान से और अधिक जुड़ पाते।
मोहन बाबू और विष्णु मंचू के बीच के कुछ दृश्य अधिक प्रभावशाली हो सकते थे, यदि उनमें थोड़ी और नाटकीयता होती। संगीत भी फिल्म की गति को प्रभावित करता है—कुछ रोमांटिक गाने फिल्म की थीम से मेल नहीं खाते और प्रवाह को बाधित करते हैं। तकनीकी रूप से फिल्म भव्य तो है, लेकिन कुछ दृश्यों में VFX अपेक्षा से कमजोर नजर आते हैं, जो कहानी की विशालता के सामने थोड़ा पीछे रह जाते हैं।
फिर भी, इन खामियों के बावजूद, कन्नप्पा एक ऐसी फिल्म है जो अपनी सच्चाई, श्रद्धा और समर्पण के कारण देखी जानी चाहिए। यह केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि उस यात्रा की झलक है जहां एक सामान्य व्यक्ति असामान्य आस्था के रास्ते पर चलकर ईश्वर का प्रिय बन जाता है।
Direction & Music : Visuals
निर्देशक मुकेश कुमार सिंह ने कहानी को ईमानदारी से पेश किया है लेकिन कुछ भावनात्मक और आध्यात्मिक गहराई अधूरी रह गई। संवाद प्रभावशाली हैं, और शेल्डन चाउ की सिनेमैटोग्राफी दृश्यात्मक अनुभव को समृद्ध बनाती है।
संगीतकार स्टीफन देवासी का संगीत औसत है। कुछ गाने फिल्म की लय को तोड़ते हैं, खासकर रोमांटिक ट्रैक्स। अगर बैकग्राउंड स्कोर और भी सटीक होता, तो भावनात्मक दृश्यों का प्रभाव और गहरा होता।
एडिटर एंथनी ने अच्छा संपादन किया है, लेकिन पहले हाफ में कुछ हिस्सों को काटा जाता तो फिल्म और प्रभावशाली बन सकती थी।
Final Verdict
Kannappa एक ऐसी फिल्म है जो दिल से बनाई गई है। विष्णु मंचू का समर्पण, प्रभास की दमदार मौजूदगी और एक सशक्त क्लाइमैक्स इसे देखने योग्य बनाते हैं। हालांकि फिल्म में कुछ खामियां हैं—धीमी गति, अधूरे किरदार, औसत वीएफएक्स—लेकिन इसकी आत्मा और भक्ति की भावना इसे खास बना देती है।
अगर आप आध्यात्मिक सिनेमा में रुचि रखते हैं और एक भावुक कथा की तलाश में हैं, तो Kannappa आपके लिए एक अच्छी पारिवारिक फिल्म हो सकती है।
हमारी रेटिंग: ⭐⭐⭐🌗 (3.5/5)