One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन क्या है, समझिए फायदे और नुकसान से जुड़ी सारी डिटेल

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One Nation One Election In India: एक देश एक चुनाव

केद्रीय कैबिनेट ने 18 सिंतबर को वन नेशन वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद वाली समिति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.पूर्व राष्ट्रपति के नेतृत्व वाली समिति ने मार्च 2024 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. पिछले कई सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने अहम भाषणों में भी इसका जिक्र करते आएं है और अब इसके तहत लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराएं जाएंगे. सरकार संसद के शीतकालीन सत्र यानि नवंबर-दिसंबर में इसके बारे में बिल पेश करेगी. इसे लेकर अब देश में सियासत भी शुरू हो गई है. कांग्रेस ने इसे मुद्दे को भटकाने वाला फैसला भी बताया है. देश में इलेक्शन सिस्टम में अगर बदलाव होता है तो इसका क्या असर पड़ेगा विस्तार से समझिए.

One Nation One Election Kya hai : क्या है वन नेशन वन इलेक्शन?

वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि भारत में सभी लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ में कराएं जाएंगे. साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव एक ही दिन या एक तय सीमा में कराएं जायेंगे. आसान शब्दों में कहे तो मतदाता एक ही समय में अपने सांसद और विधायक, स्थानीय जनप्रतिनिधि का चुनाव कर सकेंगे भारत के लिए ये कोई नई बात नहीं है. देश में आजादी के बाद से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराएं गए थे. 1962,1957,1952 और 1967 में दोनों चुनाव एक साथ हुए थे. लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और अन्य कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन नेशन वन इलेक्शन की बहस को फिर से छेड़ दिया था. उन्होने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था वन नेशन वन इलेक्शन भाजपा सरकार के प्रमुख एजेंडों में से एक है.

One Nation One Election: इसे लेकर सरकार की क्या दलील हैं?

सरकार समझती है इससे जनता को बार-बार चुनाव से मुक्ति मिलेगी. चुनावी खर्च बचेगा और वोटिंग पैटर्न मे इजाफा होगा. हर बार चुनाव कराने में करोंड़ों रूपए खर्च होते है जो कि कम हो सकता है. इसके अलावा राजनीतिक स्थिरता लाने में ये अहम रोल निभा सकता है. इलेक्शन की वजह से बार –बार नीतियों में बदलाव की चुनौती कम होगी. सरकारें बार-बार चुनावी मोड में जाने के बजाए विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी. प्रशासन को भी इसका फायदा मिलेगा, गवर्नेंस पर जोर बढ़ेगा. पॉलिसी पैरालिसिस जैसी स्थिति से छुटकारा मिलेगा. अधिकारियों का समय और एनर्जी बचेगी. इसका बड़ा आर्थिक फायदा भी होगा. सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी.

लेकिन इतना बड़ा देश जिसमें अलग-अलग राज्य हैं उसमें वन नेशन वन इलेक्शन आसान नहीं होगा इसे लेकर विपक्ष कई सवाल उठा रहा है. अब जानिए की सरकार के सामने इसे लागू करने में चुनौतियां क्या-क्या होंगी |

One Nation One Election: इसे लागू करने में क्या हैं चुनौतियां?

वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती है संविधान और कानून में बदलाव. एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेंगा | इसके बाद इसे राज्य विधानसभाओं में पास कराना पड़ेगा । वैसे तो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 5 साल का होता है. लेकिन इन्हे पहले भी भंग किया जा सकता है. सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी की अगर लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा भंग हो जाती है तो एक देश एक चुनाव कैसे कराया जाएगा । एक साथ चुनाव के लिए ज्यादा प्रशासनिक अफसरों और सुरक्षा बलों की जरूरत को पूरा करना भी बड़ा सवाल है। अपने देश में ईवीएम और वीवीपैट से चुनाव होते है इसकी संख्या भी सीमित है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव होते है तो इनकी संख्या पूरी पड़ती है लेकिन जब पूरे देश में एक साथ चुनाव होंगे तो इनकी संख्या कम पड़ेगी. मैनपॉवर की जरूरत पड़ेगी और इनकों पूरा करना चुनौती होगा ।

One Nation One Election: इसे लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी सिफारिश में क्या कहा है ?

कोविंद समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि वन नेशन –वन इलेक्शन लागू करके केंद्र और राज्य सरकारों के चुनावी चक्रों में तालमेल बैठाया जा सकेगा. देशभर में दो चरणों में चुनाव होंगे .पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव होंगे. वहीं 100 दिनों के भीतर दूसरे चरण में नगर पालिका और पंचायत चुनाव कराए जाएंगे. अब यहां समझने वाली बात ये है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव केंद्र चुनाव आयोग यानि इलेक्शन कमीशन कराता है. जबकि स्थानीय निकायों के चुनाव राज्य चुनाव आयोग करवाता है. संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग का जिक्र है अब अगर देश में एक साथ चुनाव कराएं जाने हैं तो संविधान संशोंधन की भी आवश्यकता है वन नेशन वन इलेक्शन का विपक्ष जमकर विरोध कर रहा है. विपक्ष का कहना है कि एक राष्ट्र एक चुनाव से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने से वोटिंग पैटर्न प्रभावित होगा. इसके अलावा ये क्षेत्रीय पार्टियों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा साबित होगा. इसके अवाला एक राष्ट्र एक चुनाव में जरूरत से ज्यादा पैसा खर्चा हो सकता है . इसमें कई सारी बातें अभी ऐसी हैं जो केंद्र सरकार की तरफ से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर साफ की गई हैं. लेकिन कुछ बातें अभी ऐसी हैं जिनपर केंद्र सरकार अभी विचार करेगी . ये बिल जब लोकसभा में रखा जाएगा इस पर चर्चा होगी इसमें बदलाव होंगे ये सब नवंबर के आस-पास शुरू होगा जब सत्र शुरू होगा.

इस पूरे पैटर्न को आप कैसे देखते है क्या आप वन नेशन वन इलेक्शन को सही समझते है कॉमेंट सेक्शन में अपनी राय जरूर शेयर करें.

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